शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

लंगड़ी सत्ता का राजधर्म


एक लंगड़ी सत्ता का राजधर्म

प्रभात शुंगलू
गोधरा दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मुख्यमंत्री मोदी को राजधर्म का पाठ पढ़ाया। गुजरात जाकर मोदी का इस्तीफा लेकर लौटते तो उनका भी राजधर्म समझ में आता। गठबंधन का नेतृत्व कर रहे थे इसलिए उनसे भी उम्मीदें थीं। बहरहाल, समय बदला, काल बदला और नेतृत्व के साथ सूरत और सीरत भी बदली। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अब यही सवाल जनता मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर दाग रही – राजधर्म निभाओ और इस्तीफा दो। मनमोहन सिंह कह रहे – क्यों दूं।

तब वाजपेयी के हाथ आडवाणी, संघ और पार्टी के गर्म दल के दूसरे सदस्यों नें बांध रखे थे इसलिए वो मोदी से इस्तीफा नहीं ले पाए। मनमोहन सिंह के हाथ 10 जनपथ नें बांध रखे हैं। जो मनमोहन सिंह से इस्तीफा ले नहीं सकती। न्यूज़ चैनलों के संपादकों के साथ प्रेस वार्ता में मनमोहन सिंह ने ये साफ कर दिया कि वो कुर्सी नहीं छोड़ेंगे बल्कि अपना दूसरा कार्यकाल भी पूरा करेंगे। यानि कुल मिला कर उस प्रेस वार्ता से ये न्यूज़ छन कर आई कि राजकुमार राहुल राजतिलक के लिए फिलहाल तैयार नहीं हैं।

मनमोहन सिंह से सवाल बड़ा साफ था। क्या वो ऐसे बड़े भ्रष्टाचार की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हैं। नैतिक ज़िम्मेदारी तो दूर प्रधानमंत्री तो मुस्कुरा कर ये कह गए कि मीडिया उनको जबरन दोषी ठहराने की कोशिश कर रहा। वह दरअसल उतने बड़े दोषी हैं नहीं। हांलाकि उन्होने इस बात का खुलासा नहीं किया कि खुद को दोषी साबित किये जाने का क्या मापदंड उन्होने स्वयं तय किया है। अब किसको किस लेवल के दोषी पाए जाने पर कितनी सज़ा सुनाई जाए ये भी जनता की अदालत में तय नहीं होगा। मनमोहन सिंह जिस भी लेवल के दोषी हों अगले 40 महीने के बचे कार्यकाल को पूरा करने का हक उनसे कोई नहीं छीन सकता। इस कैवियेट के साथ अब जनता को भी जीना होगा। शायद लेम-डकसत्ता का राजधर्म यही है। वाजपेयी गोधरा दंगों के बाद भी मोदी के साथ बने रहे और मनमोहन सिंह ने भी अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करने की शपथ ली।

सात साल की प्रधानमंत्रीगिरी नें मनमोहन सिंह को इन्फ्लेशन और भ्रष्टाचार पर काबू पाने के गुर भले न सिखाए हों उन्हे शब्दों के महीन जाल बुनना ज़रूर सिखा दिया। प्रेस वार्ता में भ्रष्टाचार की बात और बढ़ी तो झट पल्ला सहयोगी दलों पर झाड़ दिया। गठबंधन सरकार चलानी है इसलिए थोड़ा-बहुत भ्रष्टाचार तो नज़रअंदाज़ करना पड़ेगा। बस यही कोई पचास-साठ हज़ार करोड़ का। इतना तो उनकी सरकार गरीबों को अनाज और खाद में सब्सिडी के रूप में दे देती है। इसको 2जी स्पैक्ट्रम लाइसेंस सब्सिडि मान लिया जाए। बहरहाल, ये तो रहा सहयोगियों के भ्रष्टाचार का दायरा। गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी का भी दायरा तय हो चुका है। एक साथ तीन-चार भ्रष्टाचार के आरोप लगने चाहिये। और उन भ्रष्टाचार के मामलों का स्तर भी सीडब्लूजी स्कैम, आदर्श घोटाला और इसरो एस बैंड स्कैम कुछ इस गरिमा का हो जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय पर भी उंगली उठाई गई हो तो उस पर बहस करने में इंडिया ऑन द मूव जैसी फीलींग आएगी।

मनमोहन सिंह कतई नहीं चाहते कि गठबंधन टूटे। ऐसा हुआ तो समय से पहले इलेक्शन होगा। उसमें भी हज़ारों करोड़ ज़ाया होंगे। इसलिए भ्रष्टाचार से समझौता कर लिया। समझौता या भ्रष्टाचार के आगे समर्पण। इसे समझने के लिए किसी पीएचडी की ज़रुरत नहीं। लेकिन गठबंधन सरकार चलाने के लिए सहयोगियो और कांग्रेसी भ्रष्टाचार का इतना खूबसूरत बैलेन्स बनाए रखने वाले डॉक्टर मनमोहन सिंह एक और डॉक्टरेट के हकदार ज़रूर हो गए हैं।  

ऐसा नहीं है कि कि डॉक्टर मनमोहन सिंह ने भ्रष्टाचार का इलाज नहीं ढूंढ़ा है। एक तो यह कि अब वो तीसरी बार ए राजा को मंत्रिमंडल में शामिल करने की गुस्ताखी नहीं करेंगे। वो ए राजा की ही तरह करूणानिधी के दूसरे वफादार को मंत्रिमंडल में लाएंगे। दूसरा यह कि जल्द ही वो मंत्रिमंडल फेरबदल करेंगे। बस भ्रष्टाचार उड़न छू हो जाएगा। लोकपाल बिल कब लाएंगे पता नहीं, स्टेट फंडिग और लॉ कमीशन के सुझाव संबंधित चुनाव सुधार बिल कब लाएंगे पता नहीं। पूछा गया कि नेताओं और मंत्रियों के भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए डिस्क्रीशनरी कोटा काटने या कम करने का क्या पैमाना होगा इसपर भी चुप। कुल मिलाकर लगा नहीं जो सरकार इतने सारे सवालों और विवादों में घिरी हो उसका मुखिया अपने प्रेस पब्लिसिटी स्टंट में भी ग्रेस मार्कस से पास होगा, ये अलग बात है कि डॉक्टर मनमोहन सिंह खुद को दस में से सात अंक देने से नहीं चूके। ये साफ नहीं हुआ कि ये नंबर उन्होने यूपीए सरकार के अब तक के स्कैम की गिनती को ध्यान में रखकर दिए। या जो तीन नंबर काटे वो यूपीए 2 के बचे तीन सालों में आने वाले स्कैम के मद्देनज़र।

स्पैनिश के मशहूर लेखक गाब्रिएल गार्सिया मार्केज़ की एक नॉवेल काफी चर्चित रही। क्रोनिकल ऑफ ए डेथ फोरटोल्ड। यानि वो मौत जिसकी कहानी पहले ही लिखी जा चुकी हो। ये एक युवक सांतिआगो नसर की हत्या की कहानी है। कैसे पूरे शहर को इस हत्या का पता होता है पर फिर भी सांतिआगो को ढूंढ़ कर कोई उसे आगाह नहीं करता कि दो भाई उसे मारने आ रहे। गरीबी, भुखमरी और आसमान छूती कीमतों से त्रस्त सांतिआगो नसर रूपी जनता रोज़ मारी जा रही। लेकिन इस हत्या से जनता को बचाने वाला कोई नहीं। न ही वो सिस्टम जिसे उसकी सुरक्षा की गारंटी लेनी चाहिये थी क्योंकि उस सिस्टम को भ्रष्टाचार की दीमक ने खोखला कर दिया है। और न ही वो नेता जो कहने को जनता का नुमाइंदा है पर अब व्यापारी बन चुका है जिसके इंटर्नेशन्ल बैंक खातों में लाखों डॉलर काला धन जमा है। मार्केज़ की कहानी की पृष्ठभूमि लातिनी देश से हिंदुस्तान के किसी कोने में कॉपी-पेस्ट करने की ज़रूरत है, बस। टाइटिल भी झाड़-पोंछ कर फिट बैठेगा। क्रोनिकल ऑफ ए स्कैम फोरटोल्ड। इसके संपादक मार्केज़ नहीं डॉक्टर मनमोहन सिंह होंगे। 

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