गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

Godhra


क्या कलीमउद्दीन जैसे भी रिहा होंगे


प्रभात शुंगलू
हत्या और साजिश का ऐसा मामला जिसमें 59 जानें गईं और मुख्य आरोपी सहित दो-तिहाई आरोपी बरी हो गए। गोधरा कांड मामले में अतिरिक्त सेशन जज के फैसले से एक बात तो बिल्कुल साफ हो गई कि गुजरात सरकार और प्रशासन नें बेगुनाह लोगों को झूठे मुकद्दमें गढ़ कर इस केस में फंसाया। जिस बात से पर्दा उठना अभी बाकी है वो ये कि अगर किसी साजिश के तहत साबरमती एक्सप्रेस की कोच एस 6 को जलाया गया जिसकी वजह से अयोध्या से लौट रहे 59 श्रद्धालू मारे गए तो ये साजिश क्यों और किसके इशारे पर रची गई।

इस मामले में 25 फरवरी को कोर्ट 31 दोषियों को सज़ा सुनाएगा और तभी इस बात का भी खुलासा हो पाएगा कि एस 6 बोगी को जलाने के पीछे साजिश ही थी अदालत इस नतीजे पर कैसे पहुंची। ये खुलासा ज्यादा महत्वपूर्ण होगा कि आखिर ये साजिश किन कारणों से रची गई। क्या इस साजिश के तार किसी घटना विशेष से जुड़ते हैं। या इतिहास के किसी गुज़रे सफे को छूते हैं। इस साजिश के पीछे भी कोई साजिश थी। और थी तो वो क्या थी। आखिर कुछ लोगों नें अचानक ट्रेन की एक बोगी जलाने का इरादा क्यों ठान लिया। इन पहलुओं पर अदालत की बात तफ्सील से उसी दिन जान पाएंगे। लेकिन सवाल ये उठता है इस सिस्टम का बुना और गढ़ा ये कैसा क्रिमिनल ज्यूरिसप्रूडेन्स ढांचा है जिसमें एक बेगुनाह को इंसाफ मिलने की शर्त ये है कि उसे नौ साल जेल में गुज़ारने पड़ेंगे।

तो क्या इसे इंसाफ की जीत मानना चाहिए कि नौ साल बाद मुख्य आरोपी मौलाना उमरजी और उनके जैसे 62 अन्य बेगुनाहों को आखिरकार अदालत ने बेगुनाह बताया। लेकिन मौलाना उमरजी ने तो नौ साल जेल में ऐसे काटे मानो कसूरवार वही था। हत्यारा वही था। साजिश उसी ने रची थी। 59 लोगों की जान का ज़िम्मेदार वही था। मौलवी उमरजी का बेटा सईद सुबह अदालत का फैसला सुनने के बाद फोन पर प्रेस से बात करते करते खुशी के मारे रो पड़ा। उसके ये आंसू रात में टीवी चैनलों के प्राइम टाइम में भी नहीं थम रहे थे। बस प्राइम टाइम के आंसू एक सवाल पूछ रहे थे। आखिर मेरे वालिद की बेगुनाही और उनके उन नौ साल का खामियाज़ा कौन देगा। किस किस को जवाब देंगे कि अदालत में उनके खिलाफ आरोप पत्र तय हुए थे। बिना ट्रायल के वो बेगुनाह नहीं साबित दिये गए।

सवाल ये भी उठता है कि क्या देश का सिस्टम पूर्व टेलीकॉम मंत्री राजा के साथ भी मौलवी उमरजी जैसा सलूक कर पाने की गुस्ताखी कर पाएगा। क्या 2 जी स्पैक्ट्रम जैसे मदर ऑफ ऑल करप्शन मामले में अदालती कार्यवाही पूरी होने तक और इसपर फैसला आने तक ए राजा दिल्ली के तिहाड़ जेल में ही रहेंगे। जवाब होगा – कभी नहीं। क्या इसकी कल्पना की जा सकती है कि भ्रष्टाचार या भयानक क्रिमिनल टाइप के मामले में कोई नेता, मंत्री या पूर्व मंत्री बिना दोषी साबित हुए इतने साल जेल में बिता दे। चारा घोटाला में लालू यादव जेल आते-जाते रहे मगर वहां कभी टिके नहीं। पिछले साल वो बरी हुए। बिना दोषी पाए गए 14 साल जेल में ही रहते तो क्या केन्द्र में मंत्री बन पाते। यानि इस देश में मौलवी उमरजी और उनके जैसे दूसरे बेगुनाह लोगों के लिए एक कानून है और राजा और लालू यादव जैसे नेताओं के लिए दूसरा कानून।

मगर सच यही है। इस देश में नेता का वजूद ही पूरे सिस्टम को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने के लिए हैं। जैसे लालू यादव ने बतौर रेल मंत्री गोधरा कांड की जांच करवाई। हाई कोर्ट के पूर्व न्यायधीश यू सी बनर्जी ने अपनी जांच रिपोर्ट में साजिश के ऐंगेल को पूरी तरह से खारिज करते हुए बोगी में आग लगने को एक्सीडेंट करार दिया। यही लालू यादव चाहते थे। इस जांच रिपोर्ट के ज़रिये वो बिहार चुनाव में मुसलमानों के मसीहा होने का तमगा पूरी तरह से सुरक्षित कर लेना चाहते थे। उसी तरह जैसे 27 फरवरी 2002 की सुबह नए ऩए मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के मन में हिन्दु ह्द्य सम्राट बनने का जुनून सवार हुआ।

सवाल अब उनसठ लोगों की निर्मम हत्या का नहीं। सवाल उन 1200 लोगों का है जिन्हे अगले तीन दिन में दंगों में अपनी जान गंवानी पड़ी। अगर गोधरा कांड साजिश थी तो उसके बाद भड़के दंगे क्या किसी साजिश का हिस्सा नहीं था। तो क्या मौलवी उमरजी और उनके जैसे बेगुनाह लोगों को फंसाने के पीछे राज्य प्रशासन को कोई हिडेन एजेंडा था। क्या उस हिडेन एजेंडे के ज़रिये राज्य सरकार कुछ जवाबों के सवाल खड़े कर रही थी। अगर एस 6 कोच जलाना साजिश थी तो क्या उसके बाद का कम्यूनल भूकंप भी किसी साजिश का हिस्सा था। एस 6 को जलाने की साजिश के पीछे जो लोग थे उनके नाम और पहचान अब सामनें आ चुकी है। दंगों की साजिश के रचयिता कौन लोग थे ये नाम भी अब किसी से छुपे नहीं। ये साजिश ज्यादा घातक थी क्योंकि इसमें आंखों के सामने तीन दिन तक नरसंहार हुआ और प्रशासन आंखों पर पट्टी डाल कर तमाशा देखता रहा।

गुजरात से बाहर, मालेगांव धमाके में भी कितने बेगुनाह इंसाफ की आस लगाए जेल में बंद हैं। क्या सबूत है कि उनपर भी पाकिस्तान से आतंकवादी ट्रेनिंग लेने का आरोप गढ़ा नहीं गया होगा। क्या सरकारी तंत्र पर ये शक करना निराधार होगा कि उन आरोपियों के पास से हथियारों की जो बरामदगी दिखाई गई वही असलियत थी। क्या मालेगांव ब्लास्ट में पकड़े गए असीमानंद के बयानों के बाद भी युवा कलीमउद्दीन जैसे लोगों की बेगुनाही के बारे में कहने को कुछ रह जाता है। मगर सवाल यही है कि सिस्टम में उमरजी और कलीमउद्दीन जैसे लोग हमेशा हाशिये पर क्यों रहते हैं।

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